रायगढ़/मीना बाजार की स्वीकृति को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। स्वीकृति दिलाने वालों और उसका विरोध करने वालों के बीच महाभारत छिड़ी हुई है, पर आम जनता और आस-पास रहने वालों की सुध शायद किसी को नही है। आनन-फानन में योजनाबद्ध तरीके से ली गई स्वीकृति ने भी कम बवाल नही खड़े किये हैं जो संचालक की चालाक प्रवृत्तियों की ओर ईषारा जरूर करती है। बहुत पुरानी कहावत है फूट डालो और राज करो, बस इसी नीति का शायद इस बार फायदा उठाया गया है। एक ओर निगम आयुक्त का छुट्टी पर जाना और प्रभारी आयुक्त द्वारा सहमति प्रदान करना अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या प्रभारी को सहमति देने का अधिकार है या नहीं ? दूसरी तरफ सहमति प्राप्त होने के पष्चात एस.डी.एम. द्वारा मीना बाजार संचालक को लगाने की अनुमति देना और प्रचार प्रसार की अनुमति हेतु आवेदन को रोककर रखना भी कम आष्यर्चजनक नही है। बरहाल चालाक संचालक को अनुमति तो मिल ही गई लेकिन क्या यह अनुमति नियमानुसार सही है? या नही इसे तो संबंधित अधिकारी ही बता सकते हैं। लेकिन इतना जरूर है इस मीना बाजार के लगने से निगम को लाखों रूपये का नुकसान जरूर हुआ है। पूर्व में निमग द्वारा मंडी प्रांगण में परंपरानुसार मंदिर दर्षन हेतु आने वाले ग्रामीणों के लिए एवं जन्माष्टमी मेले हेतु मीना बाजार का आयोजन कराया जाता था जिससे निगम को लाखों रूपये की आय भी होती थी। पर इस बार निगम इस आय से मरहूम हो गया। वहीं इस मीना बाजार के लगने से उसके आस-पास के रहवासियों का जीना दूभर हो गया है। तेज आवाज वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों से दिनभर फूहड़ संगीत न चाहते हुए भी उन्हें सुनना पड़ रहा है। फिर भी वार्ड पार्षद के कानों में जूं तक नही रेंग रही है। वार्ड की महिलाओं का शाम होते ही घर से निकलना तक दूभर हो गया है। क्योंकि इस मीना बाजार के कारण असामाजिक तत्वों का जमावड़ा दिनभर यहां लगा रहता है।
2007 के प्राइवेट डायवर्टेड प्लाट पर किस तरह से कामर्षियल टेक्स लगाया गया कि वह मात्र दो लाख में ही सिमट रह गया। नौ साल का बकाया कामर्षियल भूमि का टैक्स सिर्फ दो लाख ….! फिर यातायात विभाग की बात ही निराली है। वह तो मानो कुंभकरणी नींद में सोया हुआ है। दोपहर से ही सबसे व्यस्ततम मार्ग ढीमरापुर रोड पर दोनों ओर कतारों में लगे दो पहिया और चार पहिया वाहन किसी बड़ी दुर्घटना को क्या न्यौता नही दे रहे हैं ? इस पर यातायात विभाग की चुप्पी समझ से परे है, और गजब की बात तो यह है कि संचालक द्वारा रोड के किनारे खड़े इन वाहनों से भी जबरन पार्किंग शुल्क लिया जा रहा है। रोड के उपर बेतरतीबी से खड़े ये वाहन एक ओर तो यातायात को बाधित कर ही रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सड़क को सकरी बनाकर बड़ी दुर्घटना को आमंत्रित भी कर रहे हैं। क्यों यातायात विभाम मौन है ? और सड़क पर खड़े इन वाहनों पर कार्यवाही क्यों नही कर रहा है। क्यों आबकारी विभाग बिना सील लगी पार्किंग रसीदों पर अपना षिकंजा नही कस रहा है। क्यों वार्ड पार्षद वार्ड वासियों को इन झंझटों में डालकर अपनी मौजमस्ती में मस्त है। क्यों निगम के कर्मचारी इस बात का जवाब नही दे रहे है कि टैक्स इतना कम कैसे हो गया। बरहाल जनता को इन सवालों का जवाब मिले या न मिले लेकिन इस प्रकार कोई भी बाहरी व्यक्ति शहर की जनता और उसके जन जीवन से खिलवाड़ नही कर सकता है। क्या मीना बाजार संचालक की भरी हुई जेबे इतनी वजनदार हो गई कि जनभांवनाओं का इस पर कोई असर नही हो रहा है और यातायात विभाग इतना कमजोर कैसे हो गया कि वह सड़क पर इस बाहरी व्यक्ति को कुछ भी मनमानी करने दे रहा है।
एक मात्र शहर के प्रथम नागरिक ने इस बात पर आपत्ति उठाई कि नियमानुसार मीना बाजार की स्वीकृति अवैध है, पर उस पर भी कार्यवाही का न होना समझ से परे है।