– पं. सचिन शर्मा
भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक दस दिनों के लिए जब आदिपूज्य गणेश हमारे घर आंगन में विराजते हैं। इस समय वे पूरे वातावरण को उत्सव के रंग में रंग देते हैं। भक्त अपने प्रिय देव को जिस भी नाम से पुकारो वे भक्तों के सदैव सहाय होते हैं।
गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। वे विशिष्ट नायक हैं इसलिए विनायक कहलाते हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है।
महाभारत युद्ध में तीर भी बोलते थे यह है प्रमाण
यूं तो भगवान गणेश के अनेक नाम प्रचलित हैं लेकिन सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूमकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन, उनके ये बारह नाम भक्तों के बीच प्रमुख रूप से प्रचलित हैं।
नहीं हो रहा था गणेशजी का विवाह, फिर आजमाई यह युक्ति
भगवान गणेश के इन सभी नामों के पीछे उनकी महिमा का कोई न कोई रूप है। ये बारह नाम नारद पुराण में पहली बार वर्णित हुए। विधारंभ और विवाह के पहले गणेश पूजन में इन नामों के साथ गणपति की आराधना की जाती है।
गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए श्लोक
सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक: लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक: धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन: द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते। Source – Nai Duniya