रायगढ़ जिले के घरघोड़ा विकास खण्ड के ग्राम-ढोरम के कांशीराम के किस्मत ने करवट बदली है। लौकी की खेती से अब उसके जीवन में धीरे-धीरे खुशहाली आने लगी है। जब मन में कुछ करने की चाहत और ईच्छाशक्ति प्रबल हो तो सफलता का रास्ता खुद ब खुद बनने लगता है। कांशीराम के साथ भी ऐसा ही हुआ। परंपरागत खेती से बड़ी मुश्किल से जीवन-यापन करने वाले कांशीराम के जीवन में आज लौकी की खेती ने एक नई बहार ला दी है। पहली बार उसने उद्यान विभाग के मार्गदर्शन में लौकी की खेती कर मात्र दो महीने में लगभग 40 हजार रुपए का मुनाफा कमाया है।
सवा एकड़ रकबे में की लौकी की खेती करके कांशीराम अब मुनाफा अर्जित करने लगा है। उद्यानिकी विभाग द्वारा संचालित लौकी क्षेत्र विस्तार योजना की मदद एवं नई तकनीक से लौकी की खेती कर रहा है। परम्परागत खेती से सवा एकड़ की खेत में उसे पहले बमुश्किल 15-20 हजार रुपए की उपज होती थी। कांशीराम की लौकी की खेती से प्रेरणा लेकर गांव के अन्य कृषक भी मिर्ची, बैगन, बरबटी, टमाटर, लौकी, मखना, तरोई आदि की खेती करने लगे है। रायगढ़ जिले में राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राज्य पोषित योजना का लाभ लेकर बड़ी संख्या में कृषकों ने सब्जी का उत्पादन करना शुरू कर दिया है। किसानों ने कठिन परिश्रम व उन्नत तकनीक को अपनाकर सब्जी की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त करने लगे है।
कांशीराम ने बताया कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा हम जैसे लघु एवं सीमांत कृषकों के लिए अनेक कल्याणकारी योजना संचालित की जा रही है। जिसका लाभ भी किसानों को मिलने लगा है। उद्यान विभाग के अंतर्गत संचालित राष्ट्रीय बागवानी मिशन लौकी क्षेत्र विस्तार योजना का लाभ मुझे भी मिला। कांशीराम ने बताया कि वह एक लघु कृषक है एवं उनके पूर्वजों से चली आ रही है पारंपरिक खेती के माध्यम से अपने परिवार का जीवन-यापन करते आ रहे थे। शासन की योजना एवं उद्यान विभाग की सलाह से लौकी की खेती उसके लिए लाभप्रद साबित हुई है। कृषक कांशीराम ने बताया कि उसके पास 4 एकड़ पुश्तैनी कृषि भूमि है। जिसके जरिए वह धान की खेती कर परिवार का भरण-पोषण करता था। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सब्जी की खेती की जानकारी जब उसे मिली तो उसने लौकी की खेती करने का मन बनाया। इसकी तकनीकी जानकारी उद्यानिकी विभाग के मैदानी अमले से प्राप्त कर उसने अपने सवा एकड़ खेत की गहरी जुताई करके 10 टे्रक्टर गोबर की खाद और संतुलित मात्रा में रसायनिक उर्वरक का छिड़काव कर लौकी की खेती के लिए तैयार किया। उद्यानिकी विभाग की सलाह से निदाई-गुड़ाई एवं खाद का उपयोग किया, आवश्यकतानुसार ड्रिप एरीगेशन से सिंचाई व कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कर मात्र दो महीने में 65 क्ंिवटल लौकी का उत्पादन किया। जिसे लगभग 40 हजार रुपए में उसका विक्रय स्थानीय बाजार व व्यापारियों को किया। कांशीराम की माली हालत पहले से बेहतर हुई है। वह लौकी की खेती को अपनाकर बेहद खुश है। अपने आसपास के किसान भाईयों को भी वह सब्जी की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।