[aph] रायगढ़ : [/aph] मछली पालन में अपेक्षाकृत कम समय व खर्च में व्यक्ति को पर्याप्त आय प्राप्त होती है। यही वजह है कि आज ग्रामीण अंचल में मछली पालन जीविकोपार्जन का एक बेहतर विकल्प बन गया है। रायगढ़ जिले में पर्याप्त जल स्त्रोत एवं नदियों के कारण मछली पालन को लगातार बढ़ावा मिल रहा है। कम खर्च व थोड़ी सी देखरेख से मछली पालकों को इससे बेहतर आमदनी होनी लगी है। यही वजह है कि आज रायगढ़ जिले में बड़े पैमाने पर मत्स्य पालन अतिरिक्त व्यवसाय बन चुका है।
[aps] मत्स्य पालन के क्षेत्र में रायगढ़ जिले की गिनती अग्रणी जिलों में होने लगी है। राज्य निर्माण के बाद से लेकर अब तक जिले में मत्स्योत्पादन लगभग दोगुना हो गया है। जिले में मछली पालन व्यवसाय से 10 हजार परिवारों को रोजगार मिल रहा है। मत्स्य पालन ने कृषकों एवं मछुवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में अहम भूमिका अदा की है। [/aps]राज्य शासन द्वारा मत्स्य पालकों को दी जाने वाली सुविधाएं भी इन्हें आगे बढ़ाने में संबल बनी है। रायगढ़ जिले में प्रतिवर्ष 20600 मे.टन मत्स्य उत्पादन होने लगा है, जबकि राज्य निर्माण से पूर्व यह आंकड़ा लगभग 12 हजार मे.टन प्रतिवर्ष था। स्पॉन उत्पादन में भी रायगढ़ जिले ने उल्लेखनीय उपलब्धि अर्जित की है। राज्य गठन से पूर्व 4 करोड़ स्पॉन के उत्पादन का आंकड़ा आज बढ़कर पौने 15 करोड़ हो गया है। स्टेफ्र ाई उत्पादन में तीन गुना वृद्धि हुई है। मत्स्य बीज उत्पादन से 25.24 लाख रुपए की आय अर्जित कर जिला प्रदेश में अग्रणी है।
रायगढ़ जिला अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जिला है। यहां की जलवायु मत्स्य पालन के अनुकूल है। जिले में 5348 तालाब एवं जलाशय है। जिनका जलक्षेत्र 8195 हेक्टेयर है। इन तालाबों एवं जलाशयों में से 5060 तालाबों के 7761 जलक्षेत्र में मत्स्य पालन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त महानदी, मांड नदी एवं केलो नदी में मत्स्याखेट सैकड़ों मछुवा परिवारों के जीवन-यापन का आधार है। जिले में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए इस साल ग्रामीण पंचायत तालाब के 77 हेक्टेयर जलक्षेत्र के लक्ष्य के विरूद्ध 151.53 हेक्टेयर का पट्टा 200 मछुवारों को मत्स्य पालन के लिए दिया गया है। इसी तरह सिंचाई जलाशय के 191.527 हेक्टेयर जलक्षेत्र को मत्स्य पालन के लिए इस साल मछुवा समितियों को प्रदाय किया गया है। मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए बैंक ऋण उपलब्ध कराने में भी जिला अग्रणी रहा है। 31 लाख रुपए के वित्तीय लक्ष्य के विरूद्ध जिले में 41 लाख रुपए का ऋण बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया गया है।
मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण, निजी भूमि पर मत्स्य पालन के लिए तालाब निर्माण पर 40 प्रतिशत का अनुदान, नि:शुल्क मत्स्य बीज प्रदाय, नि:शुल्क नाव एवं जाल का वितरण, फुटकर मछली विक्रेताओं को सायकल, आईस बाक्स, तराजू एवं औजार का वितरण, 30 हजार रुपए की विशेष छूट पर नाव, मछली उत्पादकता में वृद्धि के लिए सिपेक्स का नि:शुल्क वितरण जैसी राज्य शासन की मछुवारा हितार्थ योजना ने भी मत्स्य पालन एवं मछुवारों को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा किया है।
शासन द्वारा जिले में मत्स्य पालन कर रहे व्यक्ति व मछुआरों के लिए अनेक योजनाएं संचालित की जा रही है। जिससे वे सही तरीके से मत्स्य पालन कर अधिक से अधिक आय अर्जित कर सकें। इनमें मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजनान्तर्गत स्वयं की भूमि पर तालाब निर्माण, पानी के आवक-जावक द्वार पर जाली लगाने एवं उथले ट्यूबवेल की व्यवस्था के लिए प्रति हेक्टेयर 03 लाख रुपए के बैंक ऋण की व्यवस्था है। जिस पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के हितग्राहियों को 25 प्रतिशत या 75 हजार रुपए एवं शेष किसानों को 20 प्रतिशत या 60 हजार रुपए की अधिकतम सीमा में यह सहायता दी जाती है।
सहायक संचालक मछली पालन श्री एस.के.चौधुरी ने बताया कि मछुआरों को त्रिस्तरीय पंचायतों के तालाब व जलाशय मछली पालन के लिए पट्टे पर उपलब्ध कराकर तालाबों के पुर्नद्वार के लिए 75 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की सीमा में ऋण एवं अनुसूचित जाति व जनजाति के मछुआरों को 25 प्रतिशत व 18 हजार 750 रुपए एवं अन्य वर्ग के मछुआरों को 20 प्रतिशत या 15 हजार रुपए की सहायता दी जाती है। इसके अलावा मछली की बीमारियों में आहार व दवा आदि हेतु प्रथम वर्ष 50 हजार रुपए का ऋण दिया जाता है। इसमें कृषक को 20 प्रतिशत या 10 हजार रुपए एवं अनुसूचित जाति व जनजाति को 25 प्रतिशत व 12 हजार 500 रुपए की सहायता दी जाती है। मछुआरों का दुर्घटना बीमा योजनान्तर्गत मछली पालन का कार्य करने वाले समिति, समूह व व्यक्तिगत के तहत 18 से 70 वर्ष के मत्स्य जीवियों का शत-प्रतिशत अनुदान पर दुर्घटना बीमा किया जाता है। दुर्घटना में मृत्यु का स्थायी विकलांगता होने पर एक लाख रुपए एवं स्थायी अपंगता पर 50 हजार रुपए की सहायता दी जाती है। राष्ट्रीय मातिस्यकी विकास के अंतर्गत मछुआरों द्वारा 30 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर स्वयं व बैंक ऋण के माध्यम से तालाब पुर्नद्वार करने पर अनुसूचित जाति व जनजाति के मत्स्य पालकों को 25 प्रतिशत एवं शेष वर्ग के मत्स्य पालकों को 20 प्रतिशत के हिसाब से सहायता दी जाती है। सहायक संचालक ने बताया कि नवीन तालाब निर्माण पर उक्त बोर्ड द्वारा 2 लाख रुपए की लागत व्यय पर अनुसूचित जाति व जनजाति के मत्स्य पालकों को 25 प्रतिशत व अधिकतम 50 हजार रुपए तथा शेष वर्ग को 20 प्रतिशत व 40 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जाता है। साथ ही मत्स्य बीज संवर्धन से उन्नत किस्म की अंगुलिका उत्पादन पर इकाई लागत 03 लाख रुपए की राशि में सामान्य वर्ग के किसानों को 20 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति व जनजाति के मत्स्य पालकों को 25 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर अनुदान सहायता दी जाती है।
इसी तरह राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत मत्स्य पालकों को प्रथम वर्ष मछली आहार, उर्वरक व खाद के लिए सहायता अंतर्गत पूर्व निर्मित एवं नवीन तालाबों में मत्स्य पालन के लिए 60 हजार रुपए के व्यय पर सामान्य वर्ग को 20 प्रतिशत एवं अनुसूचित वर्ग को 25 प्रतिशत की अनुदान सहायता दी जाती है। मौसमी तालाबों में मत्स्य बीज संवर्धन हेतु 0.50 हेक्टेयर तालाब के मान से 40 हजार रुपए की सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा नदियों में मत्स्याखेट करने के लिए मछुआरों को 40 हजार रुपए तक सहायता दी जाती है। इसमें कृषक अंशदान 10 हजार रुपए होता है। साथ ही मत्स्य पालकों को आधुनिक तकनीकी ज्ञान के लिए राज्य के बाहर अध्ययन भ्रमण हेतु 3 हजार 600 रुपए प्रति हितग्राही सहायता दी जाती है।
जाल उपकरण सहायता अंतर्गत दीर्घ अवधि पट्टाधारक मत्स्य पालक / समूह को नाव-जाल क्रय के लिए 25 हजार रुपए एवं सहकारी समितियों को एक लाख रुपए की सहायता दी जाती है। मत्स्य पालकों को तालाबों में मत्स्य उत्पादकता प्रदर्शन हेतु प्रदर्शन इकाई स्थापना के लिए एक लाख 48 हजार रुपए की राशि उपलब्ध करायी जाती है। मत्स्याखेट के बाद मछलियों को ताजा रखकर बाजार पहुंचाने एवं हितग्राही को उचित मूल्य दिलवाने के उद्देश्य से कोल्डचेन की स्थापना हेतु 5 लाख रुपए की सहायता दी जाती है। इसके अलावा जलाशयों के पिंजरे (केज) के अंदर मत्स्य बीज संवर्धन व पालन के लिए पांच लाख रुपए की सहायता प्रदान की जाती है। जिससे जलाशय में उन्नत मत्स्य बीज संचित किया जा सके एवं मत्स्य उत्पादन बढ़ाया जा सके।