खरसिया। हिन्दु धर्म का प्रमुख त्यौहार देवप्रबोधनी एकादशी इस वर्श 22 नवम्बर रविवार को मनाया जा रहा है। छ.ग. में इस पर्व को सभी लोग पूरी आस्था एवं उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन घर में गन्ने का मंडप बनाकर भगवान विष्णु स्वरुप शालिगराम का विवाह तुलसी के साथ किया जायेगा। फसल कटने के बाद मनाये जाने वाले इस त्यौहार केे लिए अंचल में खासा उत्साह है।
कार्तिक शुक्लपक्ष ग्यारस को प्रबोधनी एकादश या देवउठनी एकादश पूरे क्षेत्र में धूूमधाम से मनाई जायेगी। 22 नवम्बर रविवार को पडने वाले इस त्यौहार के लिए बाजारों में काफी रौनक है। इस दिन तुलसी विवाह कराया जाता है जिसमें मंडप बनाने के लिए गन्ने का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय बाजार में गन्ने की खरीददारी जोरों पर रही साथ ही बाजार में मिठाईयों की दुकानों में भी काफी भीड देखी गई। देवउठनी एकादश पर सभी हिन्दु घरांे में तुलसी विवाह कराया जायेगा। आषाढ शुक्ल एकादशी देवशयन हो जाने के बाद मांगलिक कार्य रुक जाते है। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन माना जाता है कि देव उठते हैं और इस दिन को देवोत्थान उत्सव मनाया जाता है। घरों के आंगन में रंगोली सजाई जायेगी और महिलायें एकादशी व्रत रखेंगी । चैक पुर कर झालर,तोरन लगाकर घर को सजाया जायेगा। तुलसी चैरा को सजाकर शाम के समय तुलसी विवाह के लिए गन्ने का सुंदर मंडप बनायेंगी। तुलसी चैरा में भगवान विष्णु के रुप में पूरे मंत्रोंचार के साथ शालिगराम को स्थापित किया जायेगा। बाद में शालिगराम एवं तुलसी पौधे का विवाह रचाया जायेगा। भगवान शालिगराम को नवैद्य के साथ शकरकंध का भोग लगाया जायेगा। हिन्दु धर्म के अनुसार देवउठनी एकादश का व्रत कर स्नान,ध्यान,दान करने वाले को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। छ.ग. में इस त्यैाहार को बडे उत्साह के साथ मनाया जायेगा , इस त्यौहार को क्षेत्र में दीपावली की तरह मनाये जाने की परंपरा रही है। इसके लिए अंचल में फसल कटने के बाद कृषक उत्साह के माहौल में हैं और गन्ने की फसल की पहली कटाई की पूजा कर एकादशी में तुलसी विवाह के पश्चात बिक्रय प्रारंम्भ किया जायेगा।
प्रारंभ होंगे मांगलिक कार्य
आषाढ शुक्ल एकादशी को देव शयन हो जाते हैं जिससे हिन्दु धर्म के सभी मांगलिक कार्य नही किये जाते हैं। 22 नवम्बर को देवउठनी एकादश के बाद सभी प्रकार के मांगलिक कार्य का मुहूर्त प्रारंभ हो जाता है। विवाह जैसे मांगलिक कार्य इस दिन के साथ शुरु हो जायेंगे।