रायगढ़, 12 अगस्त 2015/ पशुधन विभाग का मुख्य उद्देश्य पशु संपदा को रोग से बचाव, उपचार, विभिन्न संक्रामक रोगों का प्र्रतिवंधात्क टीकाकरण करने के साथ-साथ नियंत्रित पशु प्रजनन द्वारा पशुओं का नस्ल सुधार एवं पशुओं को संतुलित पौष्टिक हरा चारा हेतु चारा बीज उपलब्ध कराना है।
हरे चारे का दुग्ध उत्पादन में महत्व-पशुओं को स्वस्थ रखने तथा उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए हरा चारा अति आवश्यक है। पशु इसे चाव से खाते है और आसानी से पचा भी लेते है। क्योंकि इसमें वांछित विटामिन-ए और खनिज अधिक मात्रा में पाया जाता है। पशुओं के प्रजनन शक्ति के लिए भी हरा चारा महत्वपूर्ण है, क्योंकि कम उम्र के पशुओं को अधिक मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन कैल्शियम एवं फास्फोरस की आवश्यकता होती है जिससे पशुओं में अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए इन पोषक तत्वों की उपस्थिति आवश्यक है। पशुधन विभाग द्वारा निम्न योजनाएं संचालित की जा रही है। इनमें संकर मादा वत्सपालन योजना के तहत उन्नत वत्स के उचित परिपालन हेतु चार माह उम्र से अनुदान पर संतुलित आहार उपलब्ध कराया जाता है। अनुदान पर सांड प्रदाय के तहत सुदूर अंचलों में जहां कृत्रिम गर्भाधान सेवा उपलब्ध नहीं है, ऐसे क्षेत्रों में नस्ल सुधार हेतु प्रत्येक ग्राम पंचायत में उन्नत नस्ल के सांडों द्वारा प्रजनन की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। अनुदान पर नर सूकर प्रदाय अंतर्गत अनुसूचित जाति के हितग्राहियों को उन्नत नस्ल का प्रजनन योग्य एक नर सूकर 90 प्रतिशत अनुदान पर प्रदाय किया जाता है, जिससे देशी सूकरों का नस्ल सुधार हो सके। अनुदान पर सूकर त्रयी प्रदाय योजना अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के हितग्राहियों को उन्नत नस्ल का एक नर व दो मादा सूकर 90 प्रतिशत अनुदान पर 15 दिवसीय 100 रंगीन चूजे एवं कुक्कुट आहार हितग्राही के घर जाकर प्रदाय किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में सूकर पालन बड़ी तत्परता से किया जाता है। सुकर बहुत तेजी से बढऩे वाले पशु होते है। अच्छे रख-रखाव की परिस्थिति में वयस्क मादा सूकर वर्ष में दो बार बच्चे दे सकती है और एक बार में लगभग 10 से 12 तक बच्चे देती है। सुकर के कुल भार का लगभग 65 से 80 प्रतिशत वजन के बराबर मास प्राप्त हो सकता है। सुकर के पेट में चारा खाने वाले पशुओं के पेट की तरह अमाशय में चार खाने न होकर एक ही संपूर्ण अमाशय होता है अत: यह उन पशुओं की तरह भोथरा चारा आदि का उपयोग नहंी कर पाता, इसलिए सूकर को अधिक मात्रा में सान्द्र आहार एवं कम से कम मात्रा में रेशे वाले भोजन चारा, भूसा आदि की आवश्यकता होती है। देशी सूअर की मुख्य नस्ल यहां पाई जाती है उसके मुख्य लक्षणों में पेट बड़ा और जमीन की ओर लटका रहता है इनका वजन विदेशी और क्रांस सूकरों की नस्लों की अपेक्षा कुछ कम होता है। यह प्राय: काले रंग के होते है। चेहरा लम्बा होता है और जबड़ा कानों की ओर काफी पीछे तक फैला हुआ रहता है। पीठ पर बहुत कम मांस और चर्बी होती है क्योंकि प्राय: पेट में नीचे की ओर उतर जाती है। बच्चे देने की उम्र जल्दी आ जाती है, लगभग 6 से 8 माह के बीच जवान हो जाती है। वर्ष में दो बार बच्चे देती है। नर सूकर, मादा की अपेक्षा और जल्दी प्रजनन योग्य हो जाता है। कुछ सूकरों की पीठ पर भूरे रंग की लम्बी धारियां पाई जाती है, जो उसकी संबंधी पूर्वजों के जंगली होने का संकेत है। कुछ सूकर नस्ल के भी मिलते है जिनमें लार्ज व्हाईट यार्कशायर एवं देशी दोनों के गुण पाये जाते है। सड़क किनारे के गांवों में इस तरह की संख्या अधिक है। लार्ज व्हाईट यार्कशायर एवं मिडिल व्हाईट यार्कशायर के सूकर जो शासकीय योजनाओं में प्रदाय किए गए है वे भी मिलते है।
पशुधन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले में 14 पशु चिकित्सालय, 48 पशु औषधालय, 4 कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र, 50 कृत्रिम गर्भाधान उप केन्द्र, 1 चल चिकित्सा ईकाई, 1 चल विरूजालय, 1 रोग अनुसंधान प्रयोग शाला तथा 1 शासकीय कुक्कुट पालन प्रक्षेत्र संचालित है। वर्ष 2015-16 में माह जुलाई तक जिले में कुल पशु उपचार 48183, औषधि वितरण 57019, बधियाकरण 6972, टीकाकरण 477658, कृत्रिम गर्भाधान कार्य 13273, वत्सोत्पादन 4353 आदि कार्य किए गए तथा 523 पशु चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया गया। वर्ष 2015-16 में व्यक्ति मूलक योजनाओं के भौतिक लक्ष्य प्राप्त हो सकते है। जिसमें जर्सी संकर मादा वत्सपालन-80, अनुदान पर नर सूकर प्रदाय-60, अनुदान पर सांड प्रदाय-21, अनुदान पर सूकर त्रयी (दो मादा+एक नर सूकर) प्रदाय-45 एवं बैकयार्ड कुक्कुट योजना-400 इकाई के लक्ष्य प्राप्त हुए है।