करंट से मवेशी की मौत मामले में समस्या से झाड़ा पल्ला
पुलिस ने दिखाई मानवता, मृत मवेशी को दफनाने में की सहायता
रायगढ़ – केन्द्र तथा राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद गौ रक्षा के लिये कानून बनने के साथ-साथ गौ वंश की सुरक्षा के लिये आयोग से लेकर जिला स्तर पर समितियों तथा विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों का गठन हुआ है। मगर इन सब कवायदों के बावजूद न तो गौ माता को उचित सुरक्षा मिल पा रही है और न ही इनकी जान माल की सुरक्षा के लिये बने कानूनों का सही ढंग से पालन हो रहा है। जहां तक गौ रक्षा के लिये बने समितियों की बात है तो उसमें भी अब राजनीति और लाभ उठाने की रणनीति हावी होने लगी है।
ऐसा ही एक मामला बीती रात ढिमरापुर चौक में तब देखने को मिला जब करंट की चपेट में आये एक मवेशी को मरणासन्न स्थिति में देखकर कुछ मोहल्ले के जागरूक लोगों ने गौ रक्षा सेवा समिति के पदाधिकारियों से संपर्क किया तो पदाधिकारी का स्थानीय लोगों को टका सा जवाब मिला कि अभी तो रात हो गई है कल सुबह देखेंगे। समिति के पदाधिकारी के इस वक्तव्य से आहत लोगों ने इसके बाद कोतरा रोड़ थाना प्रभारी श्रीमती कौशल्या साहू से फोन पर संपर्क कर वस्तुस्थिति से उन्हें अवगत कराया जिस पर श्री साहू ने मौके पर तत्काल अपने स्टाफ को भेजा परंतु चूंकि मामला कोतवाली थाना क्षेत्र का था इसलिये उनके द्वारा कोतवाली थाना प्रभारी अरूण नेताम को संपर्क किया गया जिस पर कोतवाली थाना प्रभारी के द्वारा भी तत्काल अपने स्टाफ को मौके पर भिजवाया और पशु चिकित्सक डॉ डी.एन.चौधरी को मौके पर बुलवाकर पशु का परीक्षण करवाया, पशु चिकित्सक द्वारा उक्त मवेशी को मृत घोषित करते पर टीआई अरूण नेताम द्वारा निगम से जेसीबी मंगवाकर पास में ही गड्ढा खुदवाया गया और मृत मवेशी को वहां दफनाया गया। तब जाकर स्थानीय लोगों ने राहत की सांस ली।
उल्लेखनीय है कि रायगढ़ जिले में बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों से मवेशियों की खरीद फरोख्त तथा इसे बाहरी प्रांत के बाजारों में बेचने के लिये लोगों को मवेशियों के साथ कई बार पकड़ा गया है इस तरह की कार्रवाहियों में गौ वंश रक्षा सेवा समिति के पदाधिकारियों की सराहनीय भूमिका भी रही है। मगर समिति के द्वारा जन सेवा के इस कार्य को संगठन के हित में भुनाने के लिये बकायदा प्रेस में जानकारी देकर अपनी पीठ थपथपाई जाती है लेकिन जब ऐन वक्त पर जरूरत पड़ती है तो ऐसे पदाधिकारियों व सदस्यों का समस्या से मुंह मोड़ लेना कहां तक उचित है।