[aps] वास्तविकता जानते ही तौबा कर लेंगे लोग
गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने की टे्रनिंग ले रहे अधिकारी [/aps]
रायगढ़ : स्वच्छ भारत मिशन के तहत रायगढ़ जिले में गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा बेहद संजीदगी से प्रयास शुरू कर दिया गया है। ओडीएफ के लिए चयनित गांवों में समुदाय आधारित स्वच्छता कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए जिला स्तरीय अधिकारियों को एक-एक गांव गोद दिए गए है। जिले में प्रशासन के सभी विभागों की भागीदारी से गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने की अभिनव पहल के अंतर्गत जिला स्तरीय अधिकारियों की दो दिवसीय टे्रनिंग की शुरूआत आज क्षेत्रीय ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थान रायगढ़ में शुरू हुई। नालेज लिंक और यूनिसेफ के विशेषज्ञ अधिकारियों को समुदाय आधारित स्वच्छता कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन का गूढ़ मंत्र बताने के साथ ही प्रशिक्षण के दौरान बकायदा उनको जन समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने का तौर-तरीका भी बता रहे है।
[aps] नालेज लिंक दिल्ली से आए विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागी अधिकारियों से चर्चा-परिचर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकाला की खुले में शौच जाना लोगों की आदत है। [/aps] लोग जानते है कि यह आदत खराब है फिर भी करते है। कई लोगों को खुले में शौच जाना आनंददायक लगता है। घर में शौचालय न बनवाना और उसका उपयोग न करना सिर्फ बहानेबाजी है। जिस दिन लोग खुले में शौच करने के दुष्परिणाम के बारे में जान जायेंगे उस दिन अपने आप इस आदत से तौबा कर लेंगे। प्रशिक्षण में यह भी बताया गया कि खुले में किया गया शौच किसी न किसी तरीके से घूम-फिरकर व्यक्ति के खाने-पीने में शामिल हो जाता है। इससे कई तरह की बीमारियां होती है। बीमारियों का ईलाज समय पर न हो पाने की वजह से असामयिक मृत्यु भी होती है। डायरिया, पीलिया, पोलियो जैसी बीमारियों का प्रमुख कारण गंदगी और खुले में शौच करना है। डायरिया से देश में प्रतिवर्ष सवा दो लाख बच्चे मौत के मुंह में समा जाते है। डायरिया का प्रमुख कारण प्रदूषित जल का सेवन है। जल के प्रदूषण में खुले में किया गया शौच एक प्रमुख कारण है।
[aps] प्रशिक्षण के दौरान यह स्पष्ट रूप से बताया गया कि गरीब से गरीब व्यक्ति यदि यह संकल्प कर ले कि उसे अपने घर में शौचालय बनवाना है और उसका उपयोग करना है, तो शौचालय बनवाना कोई बड़ा काम नहीं है। [/aps] गांव में उपलब्ध संसाधन जैसे बोल्डर पत्थर, बास के चार टुकड़े यदि उपलब्ध हो तो शौचालय का निर्माण मात्र 800 से लेकर 1000 रुपए में किया जा सकता है। यदि बोल्डर पत्थर खरीदना पड़े तो इसकी लागत ज्यादा से ज्यादा 2000 रुपए से अधिक नहीं आती। नाना प्रकार की बीमारियों से बचने, अपने घर की बहु-बेटियों के सम्मान की रक्षा तथा अपने गांवों को साफ-सुथरा रखने के लिए यह कोई बड़ी राशि नहीं है। घर में शौचालय न बनाने का कारण आर्थिक गरीबी नहीं बल्कि मानसिक गरीबी है। प्रशिक्षण में यह भी बताया गया कि हिन्दुस्तान में 60 करोड़ लोग खुले में शौच करते है। इससे न सिर्फ वातावरण प्रदूषित होता है बल्कि सैकड़ों तरह की बीमारियां भी फैलती है। व्यभिचार की 7 प्रतिशत घटनाएं खुले में शौच जाने की वजह से घटित होती है। कुपोषण इसकी वजह से होता है। सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि खुले में शौच जाने की वजह से बच्चों का शारीरिक ग्रोथ कम हो रहा है।
[aps] प्रशिक्षण में समुदाय आधारित स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत जन समुदाय के व्यवहार में परिवर्तन लाने के साथ ही स्थानीय डिजाईन के आधार पर शौचालय का निर्माण ग्रामीणों की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए कराए जाने की सीख अधिकारियों को दी गई। [/aps] जन समुदाय के आदत में बदलाव लाने के लिए भी कई उपयोगी ट्रिक विशेषज्ञों ने बताए। प्रशिक्षण में विशेषज्ञों ने प्रतिभागी अधिकारियों के तीन समूह बनाकर उनसे उनके विचार व सुझाव पर विस्तार से चर्चा की। प्रशिक्षण में डिप्टी कलेक्टर एवं लैलूंगा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री कीर्तिमान सिंह राठौर, श्रम पदाधिकारी यू.के.कच्छप, उप संचालक खनिज श्री एस.एस.नाग, जिला जनसंपर्क अधिकारी नसीम अहमद खान, कार्यपालन अभियंता हाऊसिंग बोर्ड श्री पी.सी.अग्रवाल, कार्यपालन अभियंता सीएमजीएसवाय श्री गुप्ता, जिला रोजगार अधिकारी श्री प्रमोद जैन, सहायक आयुक्त आबकारी श्री अरविंद पाटले, कार्यपालन अभियंता आर.ई.एस.श्री किण्डो, उप संचालक कृषि एम.आर.भगत, जिला साक्षरता अधिकारी श्री सिंह, सीईओ जनपद पंचायत सर्वश्री व्ही.एन.नायक, एस.सी.कछवाहा, एल.एन. पटेल, एस.एस.धुर्वे, सी.बगर्ती सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।