[su_heading size=”17″ margin=”10″]23 वें स्थापना दिवस एवं गुरू पूर्णिमा पर विशेष[/su_heading]
[aph] रायगढ़ : [/aph] ईश्वर ने जब मनुष्यों के लिये इस सृष्टी की रचना की तब सबसे पहले आकाश,वायु,अग्रि,जल,पृथ्वी,सूर्य,चंद्रमा, पेड़-पौधे,वनस्पतियां बनाई। पिता तुल्य सृष्टी रचियता ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति इस धरती पर मनुष्य ही है। अन्य प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य को बुद्धि विशेष रूप से अधिक दी जिससे वह अच्छे-बुरे का चिंतन कर उसमें भेद कर सके। ईश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी पर इसलिये ही भेजा है कि वह अपने सदविचार, सदव्यव्हार, सद आचरण और सद आहार से स्वयं को सुखी रख जगत के लिये एक मिशाल बने। लेकिन अफसोस यह सहज दिखने वाला कार्य ही संसार में सबसे अधिक कठिन है। यह कठिनतम कार्य बड़ी सहजता से अघोरगुरू पीठ ब्रम्हनिष्ठालय बनोरा में दृष्टिगोचर होता है। आज बनोरा की यह पावन भूमि संत प्रियदर्शी राम के चरण का एहसास पाते ही आस्था विश्वास और अध्यात्म के त्रिवेणी का अद्भुत उद्गम स्थल बन गई। त्रिवेणी से प्रवाहित विचारों की कल-कल धारा पूरी मानव जाति का कल्याण कर रही है। बनोरा की स्थापना जिन मूल्यों को लेकर की गई थी वह अब शैशव अवस्था से पूर्ण यौवन अवस्था में आ चुकी है। बनोरा आश्रम की स्थापना का मूल उद्देश्य केवल ईमारत को भव्य रूप देना नही था बल्कि मानविय मूल्यों एवं संवेदनाओं की नींव को इस तरह से मजबूत करना था जिससे समाज अघोरपंथ के मूल्यों को अपनाते हुये स्वत: ही मजबूत राष्ट्र निर्माण में अपनी सहभागिता दर्ज करा सकें। व्यक्तियों से समाज और समाज से ही राष्ट्र का निर्माण होता है राष्ट्रनिर्माण के मूल मे मनुष्य ही है। मनुष्य लोभ, माया, ईष्या, द्वेष के दलदल मेें फंसकर स्वंय को शक्तिहीन बना रहा ऐसी परिस्थिति मे राष्ट्र निर्माण संभव नहीं था। अघोरेश्वर महाप्रभु त्रिकालदर्शी थे वे जानते थे यदि मनुष्य ही मजबूत नही होगा तो समाज मजबूत नही हो सकता और इसके बिना राष्ट्र के सबल होने की कल्पना भी व्यर्थ है मनुष्य को मजबूत करने के लिये उसके मानस पटल पर अघोर पंथ की अमिट छाप आवश्यक थी जिसने कि वह स्वंय को बदले और ये बदली हुई व्यवस्थायें स्वत: ही राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। अघोरश्वर महाप्रभु ने श्मशान से समाज की ओर एक नई अवधारणा का सूत्रपात तो कर दिया लेकिन इसके बाद भी बहुत सारे कार्य किये जाने शेष थे। इन शेष कार्यों को पूरा करने अहम दायित्व अघोरेश्वर ने अपने प्रियतम शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम को दिया। विश्व के जाने-माने संत अघोरेश्वर भगवान राम जी के प्रिय शिष्यों में अनन्यतम प्रिय औघड़ संत प्रियदर्शी के चरणरज से फलिभूत होकर अघोर गुरू पीठ ट्रस्ट बनोरा अध्यात्म उद्गम की पावन गंगा बन गई। संत का जीवन बहती नदी की तरह होता है, जिसका लाभ पूरे मानव जाति को मिलता है। अध्यात्म की पावन गंगा शनै: शनै: प्रवाहित होकर शिवरीनारायण, डभरा, चिरमिरी, अंबिकापुर सहित अन्य प्रांत उत्तरप्रदेश के रेणुकोट, बिहार कै मुर जिले के जिगना, झारखण्ड के आदर एवं रांची तक जा पहूंची।
23 वर्ष पूर्व आज के ही दिन परम पूज्य प्रियदर्शी राम के कर कमलों द्वारा पावन उद्देयों को लेकर अघोर विचाराधारा का जो बीज अघोर गुरूपीठ बनोरा में रोपा गया था, वह आज पल्लवित होकर न केवल समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े बेसहारा लोगों को नि: शुल्क चिकित्सा व शिक्षा सेवा उपलब्ध करा रहा है। अपितु समाज के ही संपन्न वर्ग को जीवन के उद्देश्य कला और संस्कारों के महत्व का भी अनवरत बोध करा रहा है। 23 वर्ष पूर्व भले ही लोगों को इस बात का भान न हो लेकिन आज इस आश्रम के स्थापित उद्देश्य जनजीवन की अदद आवश्यकता बन गए है। चिकित्सा और शिक्षा जीवन की मूूलभुत आवश्यकता है आज भी दो तिहाई से अधिक आबादी इन मूलभुत सुविधाओं के लिए अपने जीवन में कड़े संघर्ष का सामना कर रही है। विवश लोगों के आंसू पोछने के साधन इस विकसित अर्थव्यवस्था में कम ही है। अघोर गुरूपीठ ट्रस्ट बनोरा ऐसे ही साधन विहिन लोगों को नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविरों के जरिए अनवरत् तथा हर संभव चिकित्सा सुविधा मुहैय्या करा रहा है। आधुनिक मनोवृत्तियों से घिरे मानव जाति की परेशानी निरंतर बढ़ रही है। संस्कारों के अभाव से सामाजिक चेतना विलुप्त होने के कगार पर है ऐसी विषम परिस्थितियों में आश्रम से परम पूज्य के निरंतर आर्शीवाचन समाज को दिशा दिखाने में पथ-प्रदर्शक साबित हो रहे है। अघोश्वर भगवान राम ने श्मशान से समाज की ओर अघोसंरचना का सूत्रपात किया। वास्तव में अघोर पंथ आज समाज को अपनी विचाराधारा से आलोकित कर रहा है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा कि अघोर पंथ की विचाराधारा इस सभ्य समाज के लिए अदद आवश्यकता बन गई है।
उद्देश्यों को लेकर स्थापना बहुत ही सहज प्रक्रिया है, लेकिन उनका निरंतर पालन विश्व की सबसे कठिन चुनौती है, लेकिन इस आश्रम ने अपने उद्देश्यों का पालन जिस सहजता से किया है। वह अद्भुत और अविस्मरणीय है, राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझते हुए मानव मात्र को भाई समझना, नारी के लिए मातृभाव रखना,बालक-बालिकाओं के बहुमुखी विकास के लिए शिक्षोन्मुखी वातावरण निर्मित करना, असहाय व उपेक्षित लोगों की सेवा तथा उनके लिए समाज में मर्यादित भाव जागृत करना, अंधविश्वास, नशाखोरी, तिलक-दहेज, के उन्मूलन हेतु सफल प्रयास करना, मानव धर्म की मूल भावनाओं के विचार विनिमय के लिए मंच प्रदान करना इस संस्था के मूल उद्देश्य है। जिन्हें पूरा करने हेतु विभिन्न गतिविधियां निरंतर संचालित है।
अघोरेश्वर भगवान राम विद्या मंदिर आसपास दर्जनों गांव के गरीब बच्चों को सुगम रूप से शिक्षा भी उपलब्ध करा रहा है। आश्रम द्वारा संचालित विद्यालय में केजी से दसवी तक के 567 बच्चे अध्ययनरत है। निर्धन छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा के साथ – साथ नि:शुल्क गणवेश प्रदान किया जाता है। सत्र 2014-15 में 67 निर्धन छात्र-छात्राएं लाभान्वित हुए है। इन्हे नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने के एवज में राज्य शासन से कोई भी आर्थिक सहयोग नही लिया जाता। छात्र-छात्राओं की बढ़ती संख्या एवं उच्च शिक्षा की आवश्यकता को देखते हुए रायगढ़ से बनोरा जाने वाली मुख्य सडक़ से उत्तर दिशा में स्वतंत्र भू-खण्ड में आकर्षक माध्यमिक उच्च विद्यालय का निर्माण कराया गया है। नव निर्मित शिक्षण संस्था सर्व सुविधायुक्त है,शौचालय,खेल मैदान,पेयजल व्यवस्था, स्नानागार की सुविधा,शिक्षकों के लिए शिक्षक सदन, प्रधानाध्यापक के लिए स्वतंत्र कक्ष, लिपिक कक्ष,स्टोर रूम, सहित अन्य आवश्यक व्यवस्थाएं विद्यालय में मौजूद है। विशाल आकर्षक मुख्य द्वार सहित भवन में स्थित सुंदर बगीचे का निर्माण कराया गया है, जो लोगों को आकर्षित कर लेता है। इस क्षेत्र के ग्रामीण बच्चों के मन में यह भावना पनप रही थी कि उन्हें टूटे-फूटे स्कूलो में काम चलाऊ शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। परम पूज्य प्रियदर्शीबाबा राम ने बच्चों के इस मर्म को समझते हुए अच्छी शिक्षा व संस्कार डालने के लिए भव्य विद्यालय का शीघ्र निर्माण करवाया। कच्चे व उबड़-खाबड़ मार्ग से ग्रामीण व दूर-दराज गांवों से बच्चों की आने-जाने की सुविधा के मद्देनजर एक बस की व्यवस्था भी है। उच्चस्तरीय अध्यापन व कठोर अनुशासन की यह परिणिती है कि अध्ययनरत बच्चों ने जिला स्तरीय प्रतियोगिता में कई बार सफलता पाई है। बच्चों के नैतिक विकास के लिए भी विशेष ध्यान दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में कम फीस में गरीब बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की उपलब्धता से स्वंय सिद्ध है कि चिकित्सा के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी अघोर गुरूपीठ ने आकाश की बुलंदियों को छुआ है। शिक्षा के आलोक के जरिए अज्ञान के अंधकार को दूर करने का पुनीत प्रयास नि:संदेह इस आश्रम की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। शिक्षण व्यवस्था के लिए विद्यालय शिक्षण समिति गठित है जो अपने निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप अपने कार्य सुचारू रूप से कर रही है। असहाय एवं कमजोर वर्ग के छात्रों-छात्राओं को यथा संभव नि:शुल्क शिक्षा एवं छात्रवृत्ति प्रदान करना, शिक्षित बेरोजगार छात्र-छात्राओं एवं महिला-पुरूषों को पेटिंग, कढ़ाई, बुनाई एवं सिंचाई प्रशिक्षण निर्धारित उद्देश्यों में शामिल नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने के अलावा स्व.लक्ष्मण शुक्ला, मेघा छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। शिक्षण समिति ने साक्षरता का विकास कार्य एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए भारतीय संस्कृति पर आधारित अनुसंधान का कार्य भी करती है।
दैव हरियाली से आच्छादित रहने वाले इस अघोर गुरूपीठ का निर्माण घासीदास अमृतलाल एवं नंदुलाल के द्वारा दान स्वरूप दी गई साढ़े तीन एकड़ जमीन में किया गया है। आश्रम के मुख्य द्वार के उपर निर्मित आकर्षक हंस के जोड़े मनुष्य को सदा नीर-क्षीर विवेकी होनें का संदेश देते है। प्रवेश द्वार के अंदर प्रवेश करते ही एक ज्ञान केन्द्र है, जहां अघोरेश्वर के जीवन से जुड़े गं्रथ,लाकेट,फोटो एवं साहित्यों का अनुपम संग्रह है। मुख्य द्वार में रोग निवारण केन्द्र औषधालय में प्रियदर्शी बाबा राम के दुआं का असर दवा से कही अधिक है। प्रतिदिन दवा वितरण के अलावा प्रति सप्ताह बुधवार को होम्योपैथिक चिकित्सा रोगियों को नि:शुल्क दवा दी जाती है। श्वास संबंधी बीमारी की दवा प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा में दी जाती है। मिर्गी के रोगी एवं सफेद दाग के रोगी आश्रम परिसर में स्थित औषधालय से पूर्णतया छुटकारा पा सकते है। यहां दर्द निवारण फिजियोथेरेपी कक्ष की पृथक व्यवस्था है। होम्योफिजीशियन डॉ सुबोध पंडा,डॉ सुशील कुमार गुप्ता होम्योपैथिक सहायक चिकित्सक डॉ मिश्रा जनरल फिजिशियन डॉ.डी.के.दास,डॉ जी सी चटर्जी,जर्नल सर्जन डॉ.राजेन्द्र अग्रवाल,डॉ ए एम गुप्ता, डॉ ए के सिंघल,डॉ अनिल हरिप्रिया बिलासपुर,अस्थि विशेषज्ञ डॉ. पी के पटेल,डॉ अनंत कुमार,डॉ प्रफुल्ल चौहान बागबहार, डॉ आर के गुप्ता लैलुंगा,ह्दय रोग विशेषज्ञ डॉ प्रकाश मिश्रा,डॉ अजय गुप्ता,डॉ जी एन तिवारी खरसियां, डॉ यू सी शर्मा जांजगीर,शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ लोकेश षडंगी,डॉ.के.एन.पटेल डॉ संजीव गोयल,डॉ धनंजय पटेल,डॉ ताराचंद पटेल, डॉ विनोद नायक,स्त्री रोग विशेषज्ञ कु ़सुचित्रा त्रिपाठी, डॉ मधु दुबे,डॉ सारिका सिंघल,डॉ मालती राजवंशी, डॉ एस एन केशरी,डॉ त्रिभुवन साहू खरसियां,डॉ प्रेमा षड़ंगी डभरा,दंत रोग विशेषज्ञ डॉ.प्रतीक आनंद,डॉ डी के वर्मा,डॉ राहुल अग्रवाल,डॉ शलभ श्रीवास्तव,डॉ सतीश अग्रवाल,मेडिसीन स्पेशलिस्ट डॉ मनीष बेरीवाल,पैथालाजिस्ट डॉ.शिप्रा गोयल,डॉ रीना नायक,नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ आर के अग्रवाल,डॉ. प्रभात पटेल,डॉ रोहित दिलावरी रायपुर,चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ पियुष गोयल,नाक-कान-गला विशेषज्ञ डॉ लीना राय श्रीवास्तव,डॉ राजकिशोर नायक,डॉ जय साहू खरसियां,डॉ अमरेन्द्र सिंह रेणुकोट,डॉ आर के ओझा अंबिकापुर,डॉ आर के झा,डॉ अश्वनी,डॉ संजय प्रकाश,डॉ सीमा प्रकाश,डॉ अनिल शुक्ल,आदर सहित मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी का विशेष सहयोग बनोरा,डभरा,शिवरीनारायण,अंबिकापुर,रेनुकोट आदर में आयोजित होने वाले नि:शुल्क नेत्र शिविर,स्वास्थ्य शिविर में निरंतर प्राप्त होता है। नि:शुल्क शिविरों में मरीजों की जांच हेतु एक्स – रे,ई सी जी,डायबिटिक न्यूरोपेथी टेस्ट (एरीस्टो टी एफ) यूरिक एसीड टेस्ट (अलवर्ड डेविड)बोन डेंसिटी टेस्ट (मेयरबीटा बायोटिक्स) एक्सपायरो मेट्री अस्थमा टेस्ट (शिप्ला) जैसी उच्च स्तरीय सुविधायें भी मौजुद रहती हैं। धनवंतरी पैथोलेब खरसियां, श्री पैथोलेब डभरा, श्री पैथोलेब रायगढ़ द्वारा पैथोलॉजी जांच मुहैया कराई जाती है। शिविरों में वितरित की जाने वाली नि:शुल्क दवा वितरण कार्य मेडिकल प्रतिनिधी एसोशियेशन के सदस्यों के द्वारा किया जाता है।
बनोरा आश्रम में वर्ष 1997 से सितंबर 2015 तक कुल 12498 लोगों को नेत्र ज्योति मिली है जिसमें बनोरा रायगढ़ में 6987,जन कल्याण आश्रम डभरा में 3112 शक्ति पीठ शिवरीनारायण में 2326 आत्म अनुसंधान केन्द्र आदर(झारखंड)में 75 रोगियों का आपरेशन एवं लैंस प्रत्यारोपण किया गया। हाईड्रोशील का आपरेशन भी डा. राजेन्द्र अग्रवाल के नि:शुल्क सहयोग से प्रति माह किया जाता है। अब तक कुल 606 लोगों का सफल आपरेशन किया जा चुका है। बनोरा आश्रम में वर्ष 2000 से 2014 तक कुल 35824 तथा इसी अवधि में जन कल्याण आश्रम डभरा में 3753, आदर में 228 रोगी लाभान्वित हुए है। अंतिम पंक्ति में खड़े विवश,बेशहारा,तथा चिकित्सा से वंचित ग्रामीणजनों के लिये नि:शुल्क शिविरों का आयोजन किया जाता है। स्थापना से लेकर मार्च 2015 तक 45941 लोग इन शिविरों के जरिये लाभान्वित हो चुके हैं। सामाजिक कुरूतियों का निवारण भी अद्योर गुरूपीठ बनोरा द्वारा किया जा रहा है। इस क्रम में अब तक बिना दहेज के 61 विवाह संपन्न कराये जा चुके है तथा एक विधवा विवाह भी संपन्न कराया गया है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पूज्य बाबा जी द्वारा क्रियाकुटी रेनुकोट आश्रम(उप्र) में वर्ष 2012 से महिला शिल्प कला प्रशिक्षण केन्द्र प्रारंभ किया गया है। इस केन्द्र से अब तक 61 महिलाओंं को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार के योग्य बनाया गया। प्रकृति में संतुलन बनाये रखने की दिशा में यह ट्रस्ट अपनी सभी शाखाओं के चारों ओर वृक्षारोपण को प्राथमिकता देती है एवं आश्रम में आने वाले सभी लोगों को वृक्षारोपण कार्य हेतु प्रोत्साहित भी करते हंै। सामाजिक सरोकारों हेतु अपनी भूमिका के तहत वर्ष 2014 में महानदी के बाढ़ से प्रभावित पुसौर वासियों को राहत शिविर में दैनिक उपयोग में आने वाले वस्त्र,कंबल,चादर,मच्छरदानी,साबुन,साड़ी,धोती,बच्चों के पोशाक,नि:शुल्क वितरित किये गये। जांजगीर – चांपा जिले में डभरा तहसील में आई बाढ़ के दौरान भी राहत शिविरों में यथासंभव नि:शुल्क सामग्री वितरित की गई। अघोरेश्वर भगवान राम के अवतरण दिवस एवं निर्वाण दिवस के अवसर पर शासकीय चिकित्सालयो में रोगियों,वृद्धजनों एवं कुष्ठ रोगियों के आश्रम में भी फल एवं दैनिक उपयोग की वस्तुयें प्रदान की जाती हैं। अघोरेश्वर भगवान राम के सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा एवं विचारों के प्रचार-प्रसार हेतु लघु साहित्य हैण्डबिन वितरित किये जाते हैं। आश्रम की परिधि से बाहर दक्षिण-पूर्व में कृषि के लिए सात एकड़ भूमि क्रय की गई इससे आधुनिक तरीके से धान की खेती का अभिनव प्रयोग किया गया है। चुंकि गावों में रोजगार के अवसरों का अभाव होता है। इस वजह से कृषि ही प्रमुख आय का साधन है। आधुनिक तरीके से खेती के प्रयोग के पीछे यह उद्देश्य है कि क्षेत्रीय लोग इस उन्नत पूर्ण तरीके को अपनाकर अधिक उत्पादन कर सके। यहां की भूमि ख्ेाती के योग्य है लेकिन सिंचाई के अभाव की वजह से यहॉ के लोगों को एक ही फसल प्राप्त होती है। सिंचाई के तकनीक को उन्नत करने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि गेहू आदि की उपज प्राप्त की जा सके। प्रत्येक वर्ष प्रयोग के तौर पर धान की अच्छी किस्मे भी बीज स्वरूप डाली जाती है। उत्पादन के समय सिंचाई पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाता है। खेती के कार्यो में बनोरा के ग्रामीण भी अपना श्रमदान देते है। आवश्यकता पडऩे पर मजदूर भी लगाए जाते है। उत्तरोत्तर विकास पथ पर अग्रसर रहते हुए अघोर गुरूपीठ ट्रस्ट अपने स्थापित उद्देश्यों की पूर्ति में तत्पर रहता है। बिना दहेज के शादी-व्याह,मुडंन संस्कार, नामकरण संस्कार, पठनव प्रदान संस्कार, दीक्षा संस्कार सहित सभी उपयुक्त संस्कार परम पूज्य अघोरेश्वर द्वारा निर्देशित किए जाते है। चैत्र नवरात्र पूज्य अघोरेश्वर का अवतरण दिवस भद्र पक्ष,शुक्ल पक्ष,सप्तमी तिथि, 29 नवंबर को पूज्य अघोरेश्वर का निर्वाण दिवस सहित वर्ष में 4 आयोजन ऐसे होते है। जिनमें भिन्न-भिन्न प्रांतों से भक्तजन आकर आयोजन में सम्मिलित होते है। इस अवसर पर भजन-कीर्तन एवं पूजा पाठ करते है। विद्यालय के आश्रमवासी छात्रों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए एक छात्रावास का निर्माण भी कराया गया है। छात्रावास में एक विशाल बरामदा है। एक कक्ष में दस छात्र सहजता से रह सकते है। छात्र-संख्या अधिक होनें पर भी छात्र अनुशासन की डोर से बंधे होते है। गाय धर्म की अनुपम शोभा है। गौ-माता के प्रति विशेष श्रद्धा की वजह से आश्रम परिसर में गौ-शाला का निर्माण भी किया गया है जिसमें 10 गायें एवं एक बछड़ा है इनके गोबर से कंपोस्ट खाद बनाकर कृषि एवं बागवानी के उपयोग में लाया जाता है। गायों की सेवा हेतु पृथक से एक व्यक्ति मौजूद है। परम पूज्य प्रियदर्शी बाबा का नवनिर्मित कक्ष आगंतुकों को आकर्षित किए बिना नहीं रहता। इस निवास कक्ष में ही शिष्यो को अपने गुरू दर्शन का लाभ मिलता है। श्रद्धालुओं, भक्तों की व्यथा बड़े ही मनोयोग से सुनी जाती है और उनके निराकरण कर हर संभव आध्यात्मिक उपाय बताया जाता है। इस निवास के अग्र भाग में हरी घास से अच्छादित दो सुंदर क्यारियां एवं हरे घास का मैदान है जिनमें हमेशा रंग-ङ्क्षबरंगे फूलों की छटा सदैव बिखरी होती है। आश्रम का चप्पा-चप्पा हरियाली से आच्छादित है। शहरों में जिस हरियाली को देखने आंखे तरसती है जबकि इस आश्रम में जिधर नजर जाती है उधर हरियाली मन को प्रसन्न किए बिना नही रहती।
मुख्य द्वार से आगेे बढऩे पर पक्के इंटो से निर्मित विशाल उपासना स्थल है। जहां श्री यंत्र,परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम की चरण-पादुका एवं अस्थि कलश स्थापित है। जहां परम पूज्य अघोरेश्वर के भव्य चित्र स्थापित है। जिनके दर्शन मात्र से ही सारे दु:ख दर्द मिट जाते है। आश्रम में आने जाने वालों को नियमत: सर्वप्रथम उपासना स्थल में ही दर्शन करना होता है अघोर भभूत माथे पर लगाने से एवं यहां मांगी गई मनौतियां से मनोवांछित फल पूरे होते है। प्रतिदिन प्रात: प्रियदर्शी राम जी पूजा संपन्न करते है,संध्या बेला में आरती तथा भजन-कीर्तन यहां की दिनचर्या में शामिल है जिसमे कोई भी शामिल हो सकते हंै। उपासना स्थल के प्रवेश द्वार के पहले छतरीयुक्त हवनकुंड निर्मित है। जिसमें दोनों नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालु एवं भक्तगण यज्ञ में आहूति समर्पित करते है। इसकेे अलावा मुंडन संस्कार, विवाह एवं अन्य संस्कारों पर भी यहां आहूति दी जाती है।
जिस मानसिक शांति की तलाश में उम्र गुजर जाती है। वह आश्रम में कदम रखते ही व्यक्ति को सहजता से महसूस होती है। चार कक्षों का पक्का भवन उपसना स्थल में लगा हुआ उत्तर में स्थित है। इसके तीन कक्षों में अतिथियों के ठहरने की व्यवस्था भी है। इस भवन से ही लगा हुआ दो कक्षों वाला एक अतिथि गृह भी सारी सुविधाओं से पूर्ण है। इसके अतिरिक्त आश्रम परिसर में दक्षिण भाग में तीन कक्षों वाला भवन महिलाओं के शरण हेतु निर्मित है। उपासना स्थल में दक्षिण में वृहद सुसज्जित व भव्य पंडाल निर्मित है। इसके पश्चिम दिशा में सुंदर मंच निर्मित है। जिसके उपर वर दहस्त मुद्रा में पूज्य अघोरेश्वर का विशाल चित्र लगा हुआ है। आश्रम के इस पंडाल में भक्तगण आर्शीवाचन एवं प्रसाद ग्रहण करते है। पर्व, त्यौहार में यह सभागार के उपयोग में आता है। आश्रम के पीछे उत्तरी-पश्चिम कोण में तीन कक्षा एवं दो बरामदों वाला भवन है जहां आश्रम के स्थाई कार्यकर्ता के अलावा पर्व त्यौहार के दौरान अतिथिगण भी रहते है। विशाल कुंए के समीप औघड़ संत राम सागर राम जी का सुंदर समाधि स्थल निर्मित है। समाधि पर एक सुंदर अरघा एवं शिवलिंग की स्थापना की गई है। जहां भक्तगण पूजा अर्चना करते है। आश्रम परिसर के पृष्ठ भाग में एक बोरवेल है जिसकी मदद से रिक्त पड़ी जमीन में मौसमी सब्जियों के उत्पादन से आश्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। आश्रम द्वारा जनहितकारी कार्यक्रम भी संपन्न किए जाते है। मसलन अत्यंत गरीब तबके के लोग जो वर्ष भर तन ढक़ने के लिए वस्त्र संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते ऐसे लोगों के लिए पुराने वस्त्रों की व्यवस्था कर उन्हें बांटना, विपत्ति ग्रस्त एवं विकलांग अपाहिजों की सेवा करना एवं आवश्यकतानुसार आर्थिक मदद करना प्राकृतिक-दैविक प्रकोपों से पीडि़त अवस्था के लोगों को भोजन एवं वस्त्र की आवश्यकतानुसार तात्कालिक सहायता, शारीरिक कष्ट की हालत में अच्छे चिकित्सकों के जरिये इलाज एवं दवा की व्यवस्था, जाड़े के मौसम में ठंड से ठिठुरते लोगों के लिए कंबल की व्यवस्था, कमजोर महिला वर्ग के सदस्यों के लिए मरणोपरांत कफन तथा दांह संस्कार के लिए लकडिय़ों की व्यवस्था करना, आसपास के गांवों में हो रहे फिजूल खर्ची को रोकने के लिए उचित मशविरा प्रदान करने, मादक द्रव्यों को छोडऩे के लिए कारगार उपायो का प्रचार करना। आश्रम के मुठ्ठीभर कार्यकर्ताओं की सेना किस तरह ग्रामीण समस्याओं का मैदान जीत रही है। यह पूरे राज्य के शासकीय एवं गैर शासकीय संस्थाओं के लिए एक अनुपम मिशाल है। अघोर गुरूपीठ बनोरा से प्रस्फुटित श्रद्धा विश्वास की किरणें समाज को मार्गदर्शन देने का कार्य बखूबी से कर रही है। पूज्य अघोरेश्वर का एक आश्रम अमेरिका के सोनामा में निर्मित है वहां से विदेशी श्रद्धालुओं का भी निरंतर आना-जाना लगा रहता है। आश्रम दर्शन के निर्धारित समय से अन्य संप्रदाय से साधु संत एवं विशिष्टजन भी पूज्य बाबा के दर्शन पाकर सत्संग का लाभ उठाते है।
आज स्थापना दिवस एवं गुरूपूर्णिमा के कार्यक्रम :
अघोर गुरूपीठ ट्रस्ट बनोरा के 23 वें स्थापना दिवस में आयोजित कार्यक्रमों में प्रात: 06:30 बजे शक्ति ध्वज पूजन व सफल योनि का पाठ 07:00 बजे बाबा प्रियदर्शी द्वारा गुरूचरण पादुका पुजन एवं हवन 08:00 बजे सामूहिक आरती,08:30 बजे गुरू गीता का सामूहिक पाठ,09:30 बजे से श्री गुरूदर्शन अपरान्ह 04:30 बजे सत्संग एवं आर्शीवचन होगा।
लक्ष्य को हासिल करने का माध्यम है बनोरा
जीवन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये राह में अनेक रूकावटें हैं जिसकी वजह से मनुष्य अपने जीवन में भटक कर ही रह जाता है। अघोर गुरू पीठ ट्रस्ट बनोरा ऐसे ही भटके हुये व्यक्तियों को जीवन के लक्ष्य तक आसानी से पहुंचाने का शशक्त माध्यम है। बनोरा की पावन भूमि अघोरपंथियों के लिये विश्वास आध्यात्म ज्ञान की त्रिवेणी का उद्गम स्थल भी मानी जाती है।