[aps] पूरे माह भर चलने वाले रूद्राभिषेक में पूर्व की तरह ही हजारों श्रद्धालुओं के शामिल होनें की संभावना है। वहीं श्रावण पर्व से पूर्व मंदिर एवं मुख्य द्वार को बेहद आकर्षक स्वरूप देने का काम चल रहा है। [/aps] भगवान शिव की आराधना का श्रावणी पर्व 01 अगस्त शनिवार से शुरू हो रहा है। भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। अपनी अद्भुत वेशभूषा और भक्त वत्सल गुणों के कारण उन्हें भोले भंडारी, नीलकंठ, महादेव, जैसे नाम मिले है। उत्पति और संहार के स्वामी भगवान शिव की भक्ति निकृष्ठ को भी उत्कृष्ठ बना देती है जिसे सभी निरस्कृत करते है, उसे शिव अंगीकृत करते है। सभी देव जब अमृत पान के लिये प्रयासरत थे तब शिवजी ने गरल पीकर अपनी उत्कृष्ठता साबित की। विषैले सर्पो के साथ-साथ भस्म धारण करने वाले महादेव ने अपनी आराधना के लिए भी ऐसे ही माह का चयन किया, जब देव शयन के लिये जा चुके होते है। जब सब सोये हो तब एक ही जागृत होता है और वह शिव होता है। शिव का अर्थ ही निरंतर मौजूद रहने वाला या शाश्वत होता है। वस्तुत: देवाधिदेव शिव की आराधना 84 करोड़ देवों की समग्र पूजा है। ऐसे मंगलकारी देव की पूजा अर्चना यदि नियमपूर्वक कि जाये तो किसी के जीवन में अशांति नही आ सकती।
पंडरीपानी स्थित कैलाशपति धाम ने पिछले एक दशक में भगवान शिव और देवी दुर्गा की पूजा अर्चना के जो प्रतिमान बनाए है, उसके पीछे बाबा रामसिंह का त्याग प्रमुख कारण रहा है। शास्त्र में उल्लेखित नियमों और विधियों का अक्षरश: पालन करते हुए पूजा और रूद्राभिषेक को संपन्न कराना कोई खेल नही है। दरअसल ईश्वर की आराधना ही कलयुग में कठिन व्रत है। तमाम कठिनाईयों के बावजूद बाबा रामसिंह ने अपनी पूजा पद्धति की कठोरता से यह कई बार साबित किया है कि न शास्त्र झूठे हैं और न ही हमारी संस्कृति, बल्कि हम स्वयं अपने संस्कार से पीछे हटकर ईश्वर पर दोषारोपण करने के आदी हो गये है। मन, वचन और कर्म की एकरूपता के साथ की गई पूजा कभी निष्फल साबित नही हो सकती।
सावन माह में प्रत्येक दिन कैलाशपति धाम में होने वाले रूद्राभिषेक का अपना अलग आनंद और प्रभाव है। यहां पूरे श्रावण मास पर हर दिन भगवान शिव की पूरे विधि विधान से विशेष पूजा अर्चना तथा रूद्राभिषक यज्ञ का आयोजन होता आया है। इस वर्ष 1 अगस्त से शुरू हो रहा पवित्र मास 30 अगस्त रविवार को संपन्न होगा और इसी दिन मंदिर परिसर में पूर्णाहूति के साथ-साथ भंडारे का भी आयोजन किया जाएगा। जो भी श्रद्धालु इस पूजा में हिस्सा लेने चाहते है, वे पूर्व से ही मंदिर के भक्तगणों को सूचित कर दें। इसके लिए विनोद अग्रवाल (आर्शीवाद होटल), प्रमोद अग्रवाल (इस्पात टाईम्स), नटवर मोदी (लिबास), बाबूलाल अग्रवाल (एडव्होकेट ), संजय बोहिदार (देशबन्धु)से संपर्क किया जा सकता है।