रायगढ़ – एनटीपीसी लारा वह प्रोजेक्ट है जो शुरू होने से पहले ही सुर्खियों में आ चुका है। इसकी स्थापना के पहले ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इसके लगते ही रायगढ़ की पहचान दूर-दूर तक बनेगी। पहचान बननी शुरू हुई लेकिन शुरूआत गलत हो गयी।
दरअसल हम जिस नाम की परिकल्पना करते थे वह अच्छाई और समृद्धि के रूप में थी। लेकिन यहंा जो पहचान बननी शुरू हुई वह घोटालों से शुरू हुई। नतीजा यह है कि इन दिनों पूरा एनटीपीसी क्षेत्र सुलग रहा है। उन किसानों के भीतर असंतोष की चिंगारी भड़क रही है, जिन किसानों ने अपनी पूरी खेती-बाड़ी एनटीपीसी के नाम कर दिया।
[pullquote-left] पुनर्वास नीति का पालन नहीं [/pullquote-left]
आंदोलनकारियों का कहना है कि २०१२ से उनकी जमीन का अधिग्रहण कंपनी की ओर से किया जा चुका है। बावजूद इसके अब तक प्रभावितों की सुविधाओं एवं उन्हें मिलने वाले लाभ की अनदेखी की जा रही है। पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया जा रहा है। इसलिए किसानों को आंदोलन करना पड़ रहा है।
[pullquote-left] पहुंचे तहसीलदार व थानाप्रभारी [/pullquote-left]
पुसौर के तहसीलदार लाल एवं थाना प्रभारी कुरैशी मौके पर पहुंचकर किसानों को समझाईश दिये। उन्होंने आंदोलनकारियों की ओर से मांग पत्र लिया जिसे उच्चाधिकारियों तक पहुंचाने की बात कही गयी। उन्होंने किसानों को आंदोलन खत्म करने की मानमनौवल की. लेकिन किसान किसी भी कीमत पर मांग पूरी नही होने पर आंदोलन पर डटे रहने का निश्चय किया।
[pullquote-left] लटका है मुआवजा, अटकी है नौकरी [/pullquote-left]
किसानों में जो असंतोष है वह इस बात से है कि न तो उन्हें मुआवजा सही प्रकार से मिल पाया और न ही बेरोजगारों को नौकरी मिल पाई। ऊपर से रही-सही जमीन भी चली गयी। जब जमीन थी तो कम से कम दो वक्त की रोटी नसीब हो जाती थी। अब किसान बेरोजगार हो गया है। कुछ किसानों को मुआवजा मिला जिससे अब तक घर चला। अब इनके हाथ भी खाली हैं। दूसरी ओर कई किसानों को अब भी मुआवजे का इंतजार है। ऊपर से किसान पिता बेरोजगार हो गया और उसका जवान बेटे को भी कंपनी ने नौकरी पर नहीं रखा। ऐसे में विरोध प्रदर्शन स्वाभाविक है।
[pullquote-left] बहुत आवेदन दिया,अब आंदोलन [/pullquote-left]
शुक्रवार की सुबह से ही ९ प्रभावित गांव के लोगों ने प्रदर्शन करते हुए एनटीपीसी कंपनी का काम ठप्प करवा दिया। उन्होंने कंपनी प्रबंधन व प्रशासन के समक्ष अपनी ६ सूत्रीय मांग रखी है। इसके पूरा नहीं होने तक ग्रामीण आंदोलन की बात पर अड़े हुए हैं। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने ५ मई को कलेक्टर को आवेदन दिया था। इसके बाद ३० मई को भी १० बिन्दुओं का ज्ञापन कलेक्टर को सौपा गया था। इस प्रकार कई बार अपनी मांगों के संबंध में ज्ञापन दिये जा चुके हैं। लेकिन समाधान अब तक नही निकला। इसलिए मजबूर होकर आंदोलन पर उतरना पड़ा।