[su_heading size=”18″ margin=”10″]महिला स्व-सहायता समूहों को 43.76 लाख रु.की आय [/su_heading]
रायगढ़, 18 सितम्बर 2015/ छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वन मंडल के अंतर्गत आदिवासी बहुल ग्राम कडेना एंव जमाबीरा के महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा पिछले चार वर्षों के दौरान एक हजार 796 क्विंटल 72 किलो रस्सी बनाया गया। इससे समूहों को 43 लाख 76 हजार 948 रूपए की आमदनी हुई है। धरमजयगढ़ वन मंडल के अंतर्गत सिसरिंगा वृत्त में सबई घास का प्रचुर उत्पादन प्राकृतिक रूप से होता है। सबई घास (Eulaliopic binta) का उपयोग पारंपरिक रूप से रस्सी बनाने एवं घरों में छत की छवाई और खटिया बनाने के लिए किया जाता है। सबई घास माह नवम्बर एवं दिसम्बर में तैयार होती है। सबई घास से रस्सी निर्माण परियोजना के तहत सबई रस्सी के उत्पादन पर विशेष रूप से जोर दिया जा रहा है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ग्रामीण परम्परागत रूप से सबई रस्सी निर्माण करते हैं। इनके द्वारा पूरे घास का उपयोग नहीं हो पाता है और घास नष्ट हो जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा 30 मशीनें उपलब्ध कराई गई है। रस्सी निर्माण कार्य में ग्रामीण महिलाओं को जोड़कर अतिरिक्त आय का साधन मुहैया कराया गया है। इस कार्य में संयुक्त वन प्रबंधन समिति के अंतर्गत सिसरिंगा वृत्त के ग्राम जमाबीरा, कडेरा, सजवारी एवं सोखामुड़ा के 20 स्व-सहायता समूहों के माध्यम से 258 हितग्राहियों को जोड़ा गया है। इनमें अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्ग के 204 अन्य पिछड़ा वर्ग 49 हितग्राही शामिल हैं। परियोजना क्षेत्र में निवासरत आबादी के जीवकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि है। कृषि के साथ-साथ सबई रस्सी का निर्माण अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गया है। इन क्षेत्रों में हर साल लगभग डेढ़ हजार क्विंटल सबई घास का उत्पादन होता है। इससे लगभग ढाई हजार क्विंटल रस्सी बनती है, जिसकी बाजार कीमत 50 लाख रूपए होती है। अधिकारियों ने बताया कि सबई रस्सी के निर्माण से होने वाली आय में से 90 प्रतिशत राशि संग्राहकों एवं मजदूरों को अतिरिक्त आय के रूप में वितरित की जाती है।