MyCityMyChoice.com : राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के मजदूर नेता गनपत चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि रायगढ़ जिला हो या देश के किसी भी औद्योगिक कल कारखाना संस्थान प्रतिष्ठान हो जहाँ लम्बे समय तक दिहाड़ी पर काम करने वाले श्रमिक नियमित रोजगार के हकदार होंगे उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि मजदूरों को यह कहकर उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उन्हें बैकडोर से दैनिक मजदूर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मजदूरों को नियमित न करने की कार्यवाही को अनुचित व्यापार कार्य प्रणाली कहा। जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय और प्रफुल्ल चन्द्र पंत की बेंच ने भारतीय खाद्य निगम के दुर्गापुर स्थित स्टोर में कार्यरत 49 मजदूरों की याचिका पर यह निर्णय दिया। ये तमाम मजदूर लगभग पाँच वर्ष तक कैजुअल वर्कर के रूप में काम कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट की खण्डपीठ के फैसले को खारिज करते हुए मजदूरो को राहत प्रदान की। एफसीआई ने दुर्गापुर में मॉडन राइस मिल के नाम से एक यूनिट स्थापित की थी। इस यूनिट को ठेके पर चलाया जाता था। कई ठेकेदारों ने राइस मिल चलाई लेकिन 1991 मे एफसीआई ने राइसमिल बंदकर दी। उस समय तक ठेकेदार के साथ 49 मजदूरों ने दुर्गापुर कैजुअल वर्कर्स यूनियन के बैनर तले नौकरी पक्की करने का अनुरोध किया। एफसीआई के प्रबंधन ने श्रम मंत्रालय के माध्यम से मामला श्रम न्यायाधिकरण को रेफर कर दिया। न्यायाधिकरण ने जून 1999 मे श्रमिको के पक्ष में फैसला दिया हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एफसीआई की याचिका खारिज की लेकिन खण्डपीठ ने खाद्य निगम के पक्ष में निर्णय दिया। मजदूरों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की पांचवी अनुसुची की धारा 10 का हवाला दिया। इसके तहत लंबे समय तक श्रमिको को दैनिक वेतन पर रखना अनुचित व्यापार प्रणाली (अनफेयर टे्रड प्रैक्टिस) की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की धारा 25 एच का भी हवाला दिया जिसके तहत छटनी के तहत निकाले गए मजदूर अगर रोजगार मांगते है तो उन्हें अन्य लोगों के मुकाबले प्राथमिकता दी जायेगी। इंटक श्रमिक नेता गनपत चौहान ने अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार मजदूरो को नियमित किया जाना चाहिए उन्होंने यह भी कहा कि रायगढ़ जिला अंतर्गत एक सैकड़ा से भी अधिक छोटे बड़े संयंत्र स्थापित हैं जहां गत एक दशक से भी अधिक समय से ठेकेदारी प्रथा के अंतर्गत कठोर परिश्रम कर रहे है, उन्हें नियमित करवाने के लिए श्रम संगठन इंटक सदैव उत्साहित रहता है पर दुर्भाग्य जनक बात यह है कि जब उनसे सम्पर्क किया जाता है तब यूनियन बनाना ही नहीं चाहते