खरसिया (Kharsia) – नगर के हृदय स्थल में स्थित सौ बिस्तर का सिविल अस्पताल यहां ईलाज कराने आने वाले मरीजों से डाॅक्टरों द्वारा किए जा रहे अवैध उगाही एवं गरीब मरीजों को रायगढ़ रिफर किए जाने के कारण इन दिनो सुर्खियों में बना हुआ है। यहां पदस्थ डाॅक्टर अपने ड्यूटी समय में मरीजों का ईलाज करने की बजाय अपने सरकारी मकानो में निजी दुकान (क्लिनीक) संचालित करने में ज्यादा दिलचष्पी ले रहे हैं। जिससे दूर-दराज से अपना ईलाज कराने पहुंचे गरीब मरीजों को परेषानी का सामना करना पड़ रहा है।
खरसिया में लोगों को षासन के द्वारा अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देष्य से तात्कालिक मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं चिकित्सा मंत्री कृष्ण कुमार गुप्ता, पूर्व गृह मंत्री स्व. नंदकुमार पटेल के द्वारा करोड़ों की लागत से 100 बिस्तर अस्पताल का निर्माण कराया गया था। जिसका लोकार्पण स्वास्थय मंत्री अमर अग्रवाल के द्वारा किया गया था तब खरसिया सहित आसपास के लोगों में अच्छी चिकित्सा सुविधा मिलने की आस जगी थी किन्तु समय के साथ – साथ कभी दिन में दर्जनों सफल प्रसव के लिए विख्यात खरसिया सिविल अस्पताल अब उगाही एवं रिफर अस्पताल के रूप में विख्यात होने लगा है। यहां पदस्थ डाॅक्टरों मे से लगभग सभी डाॅक्टरों के द्वारा निजी क्लीनीक एवं लेब्रोरोटरी आदि का संचालन किया जा रहा है इसलिए उनके द्वारा सरकारी भवन में बैठकर अपनी निजी दुकान को चमकाने मे ज्यादा रूची दिखाई जा रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इन डाॅक्टरां के द्वारा अस्पताल में शासन द्वारा स्वीकृत सुविधाओं को विकसीत एवं व्यवस्थित करने के बजाए चाहे खून जांच हो या फिर एक्स-रे या फिर सोनोग्राफी के लिए मरीजों को अपने चहेते लोगों के क्लिनीक में भेजा जाता है। जबकि 100 बिस्तर अस्पताल में सोनोग्राफी मषीन पहले रेडक्रास द्वारा चलाया जाता था। किन्तु उक्त मषीन वर्षों से बंद पड़ी थी अभी वह मषीन कहां है उसका अता-पता भी नही है। जिससे आए दिन गर्भवती महिलाओं को सोनोग्राफी के लिए निजी क्लिनीक में जाकर मनमाना फीस देना पड़ रहा है।
[pullquote-right] सरकारी ब्लड टेस्ट पर डाॅक्टरों को नही है भरोसा – अस्पताल के भीतर मरीजों के रक्त परीक्षण के लिए ब्लड टेस्ट सेंटर स्थापित है किन्तु कोई डाॅक्टर रेडक्रास के ब्लड टेस्ट को सही ठहराता है तो कोई डाॅक्टर इन दोनो जगह के रिपोर्ट को गलत बताते हुए निजी ब्लड टेस्ट सेंटर धनवंतरी पैथोलाॅजी भेजा जाता है जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त पैथोलाजी को शासन से नर्सिंग होम एक्ट के तहत औपचारिकता पूर्ण नही है। [/pullquote-right]
सरकारी एम्बुलेंस खराब बताकर निजी वाहन मालिको को दिया जा रहा संरक्षण – खरसिया 100 बिस्तर अस्पताल में सरकारी एम्बुलेंस को खराब होना बताकर लोगों को निजी वाहन मालिको से सांठ-गांठ कर बाहर रिफर किया जाता है। यदि पीड़ीत मरीजों की माने तो जिन बीमारियों का ईलाज इस अस्पताल में संभव है उसे भी कमीषन के चक्कर में रायगढ़ रिफर कर दिया जाता है। 108 एवं 102 की सुविधा का लाभ भी जरूरतमंद मरीजों को नही मिल पाता है इस कारण आर्थिक रूप से कमजोर मरीज अनेकों बार निजी वाहन की व्यवस्था एवं किराये के अभाव में ईलाज की कमी के कारण दम तोड़ जाते हैं।
मरीजों से किया जाता है दुव्र्यहार – प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं एंव उनके परिजनो को ड्यूटी में कार्यरत नर्सिंग स्टाॅफ एवं डाॅक्टरों द्वारा अषोभनीय टिप्पणीयां की जाती है एवं बीमारी की हालत में पहले से परेषान मरीज को मोटी रकम ऐंठने के चक्कर में अपमानित भी किया जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यदि किसी महिला को लड़की पैदा होती है तो उससे नाॅर्मल डिलिवरी पर 1500-3 हजार एवं लड़का पैदा होने पर 3-5 हजार नजराना अथवा आॅपरेषन से प्रसव होने पर 5-10 हजार रू. की अवैध उगाही की जाती है। झाड़ू – पोंछा करने वाले आया एवं स्वीपर भी इसमें हिस्सेदार होते हैं तो वहीं ड्यूटी में दोनो पाली में कार्यरत नर्स एवं डाॅक्टर भी हिस्सेदार होते हैं बिना नगद भुगतान किए बच्चों के पिता को बच्चे का चेहरा तक देखने से दूर रखा जाता है।
[pullquote-left] खुले छत में किया जाता है पोस्टमार्टम – जीते जी तो मरीजों को इस अस्पताल में व्यहार एवं सम्मान मिल नही पाता मौत हो जाने पर मृतक के लाष को भी सम्मान नही मिलता। उनको पोस्टमार्टम करने के लिए अलग से कोई कमरे की व्यवस्था नही होने के कारण अस्पताल के छत में लावारिस की तरह लाष को रखा जाता है एवं उसका पोस्टमार्टम खुले छत में किया जाता है, जो कि मानव अधिकारों का हनन है। [/pullquote-left]
जीवनदीप समिति नाम बड़े दर्षन छोटे – यू ंतो कहने को जीवन दीप समिति में स्थानीय विधायक अनुविभागीय अधिकारी सहित राजनीतीक दलों एवं सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के नाम हैं लेकिन इनके द्वारा अस्पताल की अव्यवस्था पर कभी भी ध्यान नही दिया गया बल्कि उल्टे बैठक के नाम पर मात्र रस्म अदाईगी कर मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाले इन डाक्टरों को संरक्षण देकर जीवन दीप समिती के नाम को बदनाम कर रहे हैं।
स्वास्थय मंत्री के गृहनगर में स्वास्थय सेवाओं का बुरा हाल – खरसिया अस्पताल की अव्यवस्था कहावत दिया तले अंधेरा होता है को चरितार्थ करता है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थय व्यवस्था की जवाबदारी खरसिया के माटीपुत्र स्वास्थय मंत्री अमर अग्रवाल के हाथों सौंपी गई है। जब उनको पहली बार स्वास्थय महकमे का कमान सौंपा गया था तो खरसिया वासियों में एक उम्मीद की किरण जगी थी कि खरसिया अस्पताल सर्वसुविधा युक्त होगा एवं यहां चिकित्सा के अभाव में किसी मरीज को परेषान होनी नही पड़ेगा। लेकिन अपने अडि़यल रवैये में मस्त खरसिया के डाॅक्टरों के लिए यह अस्पताल किसी गार्डन से कम नही । जब टहलने की इच्छा हुई तो अस्पताल पहुंचकर उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर कर चलते बनते हैं। लेकिन इन्हे मजाल है कि कोई कुछ कह दे, यदि कोई टोके तो इनका कहना है कि सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का’ उल्टे स्वास्थय मंत्री से सीधे अपनी पहंच का हवाला देकर ताव दिखाते हैं यही वजह है कि खरसिया का सिविल अस्पताल जो कि किसी जमाने में सुरक्षित प्रसव के लिए जाना जाता था आज उगाही का अड्डा बनता जा रहा हैु। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि स्वास्थय मंत्री के गृहनगर में जब स्वास्थय व्यवस्था का बुरा हाल है तो फिर छत्तीसगढ़ के अन्य अस्पतालों की क्या दषा होगी। यदि समय रहते उक्त अस्पताल की व्यवस्थाओं को नही सुधारा गया तो यह 100 सैया अस्पताल षव सैया अस्पताल में तब्दील हो जाएगा।